महिला रचना है ईश्वर की…
किलकारी एक कन्या की जब
वंश जाति का मान बने।
कन्या रहकर के कुटुंब धरा में
वह सुन्दरता का प्रमाण बने।
किशोरी कलात्मकता में बुनकर
सरलतम विज्ञ व्यवहार बने।
अर्जित कर ज्ञान प्रतिपल वह
सभी जग-बंधन का हार बने।
सम्बन्धित प्रियजन छाँव में
वह लाडली सबकी स्नेह बने।
स्वच्छंद चरण और मति की वह
ज्योति की सुरभित नेह बने।
महिला एक मूरत त्याग की
वह प्रेम सुधा आकार बने।
अलंकृत नित वीरांगनाओं में
अकेली शत समाहार बने।
महिला जब तक है ज्ञात शांत
वह शीतल नीर सी हीर लगे।
आलम्बन हो जब क्रोधित रूप
तो देवी काली का प्रतीक लगे।
मान लिया जिसने नारी को
शक्ति सहित सर्वस्व भाव,
उन देवों को वह अति प्रिय
पावन गंगा, वेद, कुरान लगे।
महिला रचना है ईश्वर की,
महिला रचना है ईश्वर की।
वाह क्या खूब लिखा है . सुंदर रचना ! ! ! !
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बहुत धन्यवाद!
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Sahi aur sundar rachna
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धन्यवाद!
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महिला एक मूरत त्याग की
वह प्रेम सुधा आकार बने।
अलंकृत नित वीरांगनाओं में
अकेली शत समाहार बने।
ह्र्द्यस्पर्शी पंक्तियाँ
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जी, सत्य कहा आपने।
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बहुत खूबसूरत
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धन्यवाद! सर.
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