शुरू हुयी अन्त्याक्षरी, लेकर खुद का नाम
सोम रस बदनाम है
सो रसिक होए बदनाम,
पिवत न चढ़त कुछ देह मा,
वो ‘वंस मोर’ गुण गाय।
पिवत ही चढ़त जिन नर के
वो दरुहा कहलाये,
बेवड़ बन के, खुद भी
नरपति ही बन जाय।
नरपति बन के करत नृत्य
मारग मा लोटियाय
लोगन देख करै हाय हाय
तब पुलिस धरत ले जाय
सत्य कहत कविराय,
जो नर गावत रस सोम के
वो बचय रहे न कुछ काम के,
हर काम खतम हो जाए
सब वंस तोर हर जाए।
जो समझै अंत अक्षर जीवन के
मानो वो भव पार हो जाय।
I liked it
LikeLiked by 1 person
Thank u
LikeLike
थैन्कस टू।
LikeLiked by 1 person
बहुत खूब।
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद
LikeLike