अन्त्याक्षर

शुरू हुयी अन्त्याक्षरी, लेकर खुद का नाम

सोम रस बदनाम है
सो रसिक होए बदनाम,
पिवत न चढ़त कुछ देह मा,
वो ‘वंस मोर’ गुण गाय।

पिवत ही चढ़त जिन नर के
वो दरुहा कहलाये,
बेवड़ बन के, खुद भी
नरपति ही बन जाय।

नरपति बन के करत नृत्य
मारग मा लोटियाय
लोगन देख करै हाय हाय
तब पुलिस धरत ले जाय

सत्य कहत कविराय,
जो नर गावत रस सोम के
वो बचय रहे न कुछ काम के,
हर काम खतम हो जाए
सब वंस तोर हर जाए।

जो समझै अंत अक्षर जीवन के
मानो वो भव पार हो जाय।

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Author: आकाश

मै तो सर्वप्रथम एक भारतीय और छत्तीसगढ़ प्रदेश का निवासी हूँ। विवाहित और हंसमुख परन्तु एकान्तप्रिय व्यक्ति हूँ। थोड़ा क्रोधी होना मेरा अवगुण है। परन्तु स्वप्नशील, अभिलाषी भी हूँ।

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